जब उसने आखरी बार ,मुझको मुड़कर देखा था

याद है मुझे
जब उसने आखरी बार
मुझको मुड़कर देखा था
बदन में कहीं समाया
चमकते होठों पर उसके
खुद को देखा था
मासूम चेहरा 
नजर तीर जैसी 
दिल को घायल कर रही थी
हल्की-सी मुस्कुराहट में उसकी
खुद को 
उससे दूर जाते हुए देखा था


-यीतेश्वर निखिल

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