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जब उसने आखरी बार ,मुझको मुड़कर देखा था

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याद है मुझे जब उसने आखरी बार मुझको मुड़कर देखा था बदन में कहीं समाया चमकते होठों पर उसके खुद को देखा था मासूम चेहरा  नजर तीर जैसी  दिल को घायल कर रही थी हल्की-सी मुस्कुराहट में उसकी खुद को  उससे दूर जाते हुए देखा था - यीतेश्वर निखिल

वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए

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वह बचपन के  अमीरी के दिन कहां गए जब हमारे भी जहाज चला करते थे कभी उछला करते तो कभी डूबा करते  इतनी देर में हम दूसरा बनाकर तैयार कर दिया करते थे वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए जब हम बापू के कंधे पर बैठ शिवरात्रि का मेला देखा करते थे वह बचपन के  अमीरी के दिन कहां गए जब कक्षा में कोने में बैठी लड़की को अपनी वाली कहां करते थे वह बचपन के  अमीरी के दिन कहां गए जब दोनों भाई वास्तविक महाभारत ईट पत्थरों और डंडो से लड़ा करते थे वह बचपन के  अमीरी के दिन कहां गए जब सुंदर-सुंदर लड़की और स्त्रियां मुफ्त में गालों पर चुंबन किया करते थे वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए दादा की कविता दादी की कहानी गोद में बैठकर सुना करते थे वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए जब रोज सुबह गहरी नींद में होने पर मच्छरदानी में से दादाजी मच्छर निकाला करते थे वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए जब रोज रात को पिताजी मुंह में दूध का गिलास हाथों से गुड़ खिलाया करते थे वह बचपन के  अमीरी के दिन कहां गए जब हम अपनी बुआ मां से लिपट कर सोया करते थे दोनों भाई आधे-आधे शरीर को जागीर समझकर  दूध पर हा...

मेरे मरने के बाद मेरी कहानी लिखना

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मेरे मरने के बाद  मेरी कहानी लिखना  गमों में डूबी हुई   मेरी जिन्दगानी लिखना।  लिखना के मेरे होठ  कैसे हँसी को तरसे कैसे आँख से बहता था  पानी लिखना।  जब भी मेरी तरफ कोई  प्यार से देखता था मेरी आँख से बहती  मेरी मेहरबानी लिखना।  लिखना की  मुझे मोहब्बत हुई थी  उस मोहब्बत में हुई  नकामी लिखना।  लिखना के मुझे  कोई समझ न पाया तुम करते थे  मेरी परवाह लिखना।  मेरे पल पल से तुम वाकिफ हो  इसलिए  मेरी कहानी  अपनी जुबानी लिखना।  मेरे मरने के बाद  मेरी कहानी लिखना  गमो में डूबी हुई  मेरी जिन्दगानी लिखना -कवियत्री गुलबदन गजल बेगम

रात विरात फोन चलत हैं

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रात विरात फोन चलत हैं छोरा छोरी होय अधीर छोरी करे लव यू लव यू छोरा को तन मचले मचले और वीर्य छोरी कहे नींद नहीं आत मेरे संग आजा सोजा साथ छोरा सुनते ही उठ खड़ा होए जोश भरा एक योद्धा वीर रात विरात फोन चलत हैं छोरा छोरी होय अधीर करवट लेत हैं पिया संग बिस्तर में जोर लगाएं संग लिपटी हैं सोच के बिस्तर से लिपटी जाएं उधर कहानी उत्तल पुथल हैं खटिया तोड़त जाएं उल्टी करवट लेकर यह समझ खटिया ही प्रियतम बन जाएं बातों का सिलसिला इस कदर गहरा होता जाएं छोरी कहे आजा पिया अब न प्यार बिना रहा जाएं छोरा जो सुनते ही खटिया में ऐसो जोर लगाएं खुद तो हल को होय खटिया को भी गंदा कर जाएं छोरी से कहें अब नींद आ रही हैं जो सुनते ही छोरी गुस्से से धर से फोन कांट जाएं रात विरात फोन चलत हैं छोरा छोरी होय अधीर छोरी करे लव यू लव यू छोरा को तन मचले मचले और वीर्य -कवि यीतेश्वर निखिल

"अरविंद केजरीवाल"

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एक नवयुवक जगा होश में दिल्ली ऐसी थर्राई अन्ना साथ अनशन किया न मन चाही विजय मिल पाई वक्त बिताएँ मन को तसल्ली दे बैठन की उसमें क्षमता नहीं हो खड़ा जनमंच में आम आदमी पार्टी बनाई दिल्ली को दिया भरोसा जन बहुमत से विजय पाई बीच-बीच में गिरता उठता संभल गया वह नवयुवक पार्टी में गद्दार लोगों को एक किनारा दिखलाई न हुआ अब तक दिल्ली का सुल्तान कुतुब इल्तुश तुगलक नहीं भविष्य बना ऐसा दिल्ली का केजरीवाल बना परछाई - कवि यीतेश्वर निखिल