वह बचपन के अमीरी के दिन कहां गए
अमीरी के दिन कहां गए
जब हमारे भी जहाज चला करते थे
कभी उछला करते तो कभी डूबा करते
इतनी देर में हम दूसरा बनाकर तैयार कर दिया करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब हम बापू के कंधे पर बैठ
शिवरात्रि का मेला देखा करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब कक्षा में कोने में बैठी लड़की को
अपनी वाली कहां करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब दोनों भाई वास्तविक महाभारत
ईट पत्थरों और डंडो से लड़ा करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब सुंदर-सुंदर लड़की और स्त्रियां
मुफ्त में गालों पर चुंबन किया करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
दादा की कविता दादी की कहानी
गोद में बैठकर सुना करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब रोज सुबह गहरी नींद में होने पर
मच्छरदानी में से दादाजी मच्छर निकाला करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब रोज रात को पिताजी
मुंह में दूध का गिलास हाथों से गुड़ खिलाया करते थे
वह बचपन के
अमीरी के दिन कहां गए
जब हम अपनी बुआ मां से लिपट कर सोया करते थे
दोनों भाई आधे-आधे शरीर को जागीर समझकर
दूध पर हाथ रख कर सोया करते थे
-यीतेश्वर निखिल
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